"कविता नहीं लिखता हुँ"
मैं कविता नहीं लिखता हुँ,
बस करता हुँ वाक्यों की तुकबंदी ;
मन का ज्वार जब तोड़कर बुध्दि की घेराबंदी,
फूट पड़ता है भावनाओं के रुप में,
मन विचरने लगता है कल्पना लोक में,
इन्ही कल्पनाओं को शब्दों का आकार देता हुँ,
मैं कविता नहीं लिखता हुँ |
जब विषाद और अवसाद मन में,
गहराई तक भर जाते है,
और जीवन विचार स्थान ही नहीं पाते हैं,
संसार धर्म निभाते-निभाते,
जब मन हो जाता है कलुषित,
और जब मुश्किल हो जाता है,
अपने सपनों को करना पोषित,
तब कलम दवात लेकर, मनो-मालिन्य साफ करता हुँ ;
मैं कविता नहीं लिखता हुँ |
1 Comments:
this one is also good ... vicharon ko badi chaturai ke sath baandha hai kavita ke roop m..
Post a Comment
<< Home