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Thursday, April 12, 2018

शिकवे शिकायतों के दौर को रुख़सत करते है ,
चलो किसी महफ़िल में साथ शिरक़त करते है। 

कितना आसां है मुस्कुराना पूछो इन नादाँ बच्चो से ,
क्यों हम खुश होने को इतनी मशक्क़त करते है। 

ये महंगे शामियाने , ये  गालीचे क़ीमती ,
माँ की तुलसी के पौधे ही , घर में बरकत करते है। 

लिबास में तमगों के साथ तहज़ीब भी लगाना थोड़ी,
कुछ दाने मिठास के ही पानी को शरबत करते है। 

सो लेने दो सुस्ता कर कुछ देर और आज सुबह ,
बीमार तो वो भी पड़ते है जो अल-सुबह क़सरत करते है।  
            - "सचिन" 

Sunday, March 25, 2018

दिल है मेरा हीरे की तरह , 
नायाब और अनमोल। 
उम्मीद की एक किरण पड़ते ही ,
बिखेरने लगता है ये जीवन के झिलमिल रंग। 
और हीरे जितना ही मज़बूत भी। 
किसी परिस्थिति के हथौड़े की मार , 
इसे तोड़ ना पायेगी कभी पूरी तरह। 
पर अविरत आघातो ने कुछ दरारें जरूर बना दी है ,
इस नायाब , अनमोल हीरे में। 
इन दरारों से रिसते है कभी , कुछ गहरे बसे दर्द ,
और दुनिया कहती है, "ये हमेशा रोता रहता है। " 
         - "सचिन "

Saturday, July 30, 2016

समस्याओ से ग्रस्त हूं , मगर त्रस्त नहीं ;
चमक से मद्धम जरूर हूं , मगर अस्त नहीं !!

दुबके रहे लोग घरों में ,
ओढ़ कर मुक़द्दर की चद्दर। 
वक़्त की सलामी मिलीं सिर्फ़ उन्हें , 
चल पड़े जो पहन हिम्मत की खद्दर।|

Thursday, March 31, 2016

"संयम"
ग़र समंदर ख़ामोश ना रहे, बस ताक़त के जोश में रहे , क़यामत उसके आगोश में रहे , भोली नदिया कैसे उससे घुले, प्यार के अल्फ़ाज़ कहे ?
ग़र दरिया में हरदम रहे उफ़ान , अपने किनारों की भूले वो पहचान , डुबाता चले हर पेड़, जंतु , मकान, नन्ही बतख़, कैसे बनाए उसे अपना क्रीड़ा मैदान ?
ग़र विशाल वृक्ष वो वट , पत्तियों से न रोके धूप-बारिश विकट, टहनियों पे उगाये काँटों के झुरमुट , नाज़ुक़ गिलहरी कैसे उस पर दौड़े सरपट ?
ग़र पर्वत को अपनी स्थिरता खले , ढलकते पत्थरों की गड़गड़ाहट सुनने वो मचले, हिले ; जिम्मेदारी की मिट्टी न अपने पर बाँध ले , फूलों की वो प्यारी क्यारी, कैसे उसकी गोद में खिले ?

Wednesday, November 06, 2013

"असमंजस"


   किसी ने मुझे दिया है दबा,
   या फिर मैं ख़ुद ही झुक गया हूँ ?  

   समय ने बढ़ा दी है अपनी गति,
   या फिर मैं ख़ुद ही रुक गया हूँ ?

   कर ज़ुल्म सितमग़र ने छीन ली आवाज़ मेरी,
   या फ़िर अनसुनी से ख़ुद ही बन मूक गया हूँ ?

   जिंदगी ने बदल दिया है मंज़िलो का पता,
   या तीर बनकर खुद ही निशाने से चूक गया हूँ ?

   मन  की बगिया सुन पायेगी प्रेम पंछी का कलरव,
   या बन के कोयल अपनी अमराईयों में कूक गया हूँ ?

   "शायर ग़ुमनाम" फंस गया हूँ बवण्डर में कही, 
   या बदलना बदलती हवाओं के साथ रुक गया हूँ ?

Monday, January 21, 2013

"कॉर्पोरेट की नौकरी"


Coding करते बीते दिन, और debugging करते बीत गई राते,
Documentation पर weekends हुवे स्वाहा, 
और call attend किये, dinner खाते-खाते;
फिर भी जब appraisal आया, empty sheet मिल गई,
हाय यह corporate की नौकरी, मेरी जवानी लील गई ।।

दिन-दिन भर की trainings तो, हालत ऐसी कर देती है,
कि सत्य नारायण की कथा भी अब, एक entertainer लगती है ;
Cafe का बटर-पनीर भी, chewing gum जैसा लगता है,
घर का हो तो टिंडे-चावल, भी अब अच्छा लगता है ;
चाय के नाम पर गरम पानी बस, मशीन उगला करती है, 
जिसको पीकर रात-रात भर, अपनी coding चलती है ।
फिर भी जब deadline slip हुई, दिवाली की छुट्टी cancel भयी, 
हाय यह corporate की नौकरी, मेरी जवानी लील गई ।।

गर होता दा विंची corporate में, क्या मोनालिसा बन पाती थी,
design review करवाते-करवाते, नानी याद आ जाती थी ;
क्या गोपीया दीवानी होती, ऐसे किसी कृष्ण की बंसी से, 
जो दिन-रात पड़ा रहता हो, cube में अपनी mnc के ;
Attend करते-करते meetings, Roger का हाल कुछ ऐसा होता,
वो जाकर court में tennis के, खूब मजे से सोता ; 
Fire-fighting करते-करते, जिंदगी अपनी कारगिल हुई,
हाय यह corporate की नौकरी, मेरी जवानी लील गई ।।

Tuesday, August 02, 2011

मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ ...

मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ,
खुशियाँ कम, गम बहुत लिख रहा हूँ |

जब गम की बदली घिर आती है,
तब याद तुम्हारी आती है |
जिंदगी के मैदान में, जब तन्हाईयाँ अपना डेरा डालती है,
तो तुम्हारी मधुर आवाज़ कानो में बोलती है,
मनो एक मीठा सा रस घोलती है |
जन्मो का प्यासा बनकर इस रस का पान कर रहा हूँ,
मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ,
खुशियाँ कम, गम बहुत लिख रहा हूँ ,
मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ |

चमकीले ये नैन तुम्हारे, आशा के दीप जलाते है |
शोखी भरे ये भाव तुम्हारे, मन विचलित कर जाते है |
वह प्यारी सी मुस्कान तुम्हारी, जब भी याद आती है,
इस पतझड से जीवन में, इक बहार छा जाती है,
और इस मुरझाये मन की, हर कली खिल जाती है|
इस उष्ण, तप्त जीवन मरू में, इक शीतल बयार जाती है,
जब वो सुलझी, लहराती केशलताएं याद आती है |
अस्पष्ट वाक्यों में, अव्यक्त भावो का इज़हार लिख रहा हूँ,
मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ,
खुशियाँ कम, गम बहुत लिख रहा हूँ ,
मैं
आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ |

जब यादे और गहराती है,
अनायास ही इक आवाज़ आती है,
तुम प्रकृति की अनुपम "रचना" ,
सबके मन की रानी,
मेरा जीवन है संघर्षो की कहानी |
निराशाओ और असफलताओ के ज्वार वाला सागर,
जिसमे लहराता मैं, कभी इधर, कभी उधर |
जीवन नैया हरदम, मझधार में फंसी है,
मगर मन-मंदीर में, तुम्हारी ही मूरत बसी है |
कागज़ के टुकड़े पर मानस-पटल लिख रहा हूँ,
मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ,
खुशिया
कम, गम बहुत लिख रहा हूँ ,
मैं
आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ |