"PLACEMENT WOES"
First floor के बरामदे से गुजरते हुए,
कदम अचानक ठहर गए,
देख कर TP cell का notice board,
हम फिर बिफर गए |
Selection list थी company की,
जो आई थी हफ्ता भर पहले,
पर उस बेदर्द list में,
न हम नहले थे, न दहले |
वह list अपरिचित नामों से भरी थी,
नौकरी अपने लिये तो अब भी,
अनदेखी, अनजानी सी परी थी |
पास ही लगा notice जगाता फिर अरमान था,
कल सुबह 8 बजे, हाजिर होने का यह फरमान था |
notice से company का नाम था नदारद,
शंकाओ-कुशंकाओ का फिर,शुरु हुआ दौर अदद |
कही यह छलिया software तो नही,
जिसके वो verbal और puzzle,
हाय, पड़ जाते है सिर में बल ;
और वे दुष्ट logical - reasoning,
बिगाड़ देते है सारी planning |
या फिर acades का लेकर मायाजाल,
आ रही है कोई company core,
खैर, पता चलेगा कल की भोर |
कुछ technical, कुछ apti.,पन्ने भर पलटा रहे थे ;
फिर प्रेयसी नींद के झोंके भी आ रहे थे |
कल सुबह जल्दी उठने की भी है मजबूरी,
नींद के आगोश में जाने के लिये,
यह बहाना था जरूरी |
एक पूरा कचरा घर, मेरा रूम,
संपत्ति के नाम पर जिसमें,
एक computer और एक बिस्तर होता है,
जिस पर कुंभकर्ण का यह कलयुगी अवतार,
10 बजे तक सोता है |
पर आज की सुबह कुछ निराली थी,
7 बजे ही बदन पर white shirt,
और माथे पर तिलक की लाली थी |
गले मे लटका कर neck-tie,
और हाथों में ले रामप्यारी(bicycle),
जब MG Road से निकली अपनी सवारी,
मायूस करने वाले खयाल आ रहे थे |
पहले तो भरसक प्रयास के बाद भी,
written में डगमगा रहे थे ;
और कुछ भाग्यवानो के तो,
तुक्के भी कमाल दिखा रहे थे |
अब लहूलुहान कदमों से ही सही,
पर written का कँटीला रास्ता
तो तय कर जाते है ;
अगले ही पल हौसले पस्त हो जाते है,
जब interview प्रजाति के केक्टस,
अपनी राहों में उगे हुए पाते है |
कभी technical, कभी HR,
शब्द ठहर जाते है गले में,
और जुबान सूख जाती है हर बार |
मगर हाल ही के interview में,
दूर हटा सारी निराशाए,
interview panel की नजरों में थे छाए,
जब रख अपने हौसले बुलंद,
जवाब दिए थे हर प्रश्न के अकलमंद |
मगर Result देख मुरझा गए,
सोचा, शायद ग्रह-नक्षत्र बीच में आ गए |
तभी अपनी रामप्यारी ने,
हनुमान मंदीर वाली सड़क लाँघी,
चार साल में किये गए पापो के लिए,
हाथ जोड़ भगवान से क्षमा माँगी |
बजरंग बली, इस बार रह ना जाए तमन्ना अधूरी,
नौकरी लगते ही पाँच किलो लड्डुओं की
मन्नत करूँगा पूरी |
काँलेज में सुबह की सफाई चल रही थी,
झाड़ुओ से उड़ती धुल के बीच,
अपनी रामप्यारी निकल रही थी |
Tension से लबालब चेहरे
हाथो में लिए certificates के गट्ठर,
बेरोजगारो के झुंड दिख रहे थे हर कोने पर |
कुछ नारी प्रेमी भाई,सुंदरियों के आगे,
अब तक नौकरी न लगने का दुखड़ा सुना रहे थे,
पढ़ाई और career के लिए कुछ कर न सके,
इनके मामले में life secure बना रहे थे |
इंतजार करते-करते चार घंटे गए बीत,
और अब placement officer दे रहे थे सूचना,
अंदाज मे अपने चिर-परिचित |
company ने कर दिया है recruitment रद्द,
इसमें नहीं किसी का कोई दोष है,
आप लोगो को हुई असुविधा के लिए,
उन्हे भी बेहद अफसोस है |
First floor के बरामदे से गजरते हुए,
कदम एक बार फिर ठहर गए,
अब notice board पर नहीं कोई फरमान था,
रह गया जो दिल में बाकी,एक नौकरी पाने का अरमान था ॥
10 Comments:
One of the hard core truth that every engg. has to face ...and you depicted the same in a very beautiful way...
hey i read all ur poems.. good skill.. i like main kavita nahi likhta hun..
@anonymous1 - Thx Prasad Tilloo.U're among a lucky few ppl who couldn't experience this hard core truth ;)
@anonymous2 - Thx buddy. This thank would have been more intimate if u had written ur name :).
wah janab itni mushkil bato ko aap saralta se kah dete hai
kamal kiya kar diya hai aapne
wah janab jis safgoi se aapne yeh bat kahi hai wakai kabele tarif hai
wah janab kamal kar diya
dost waiting for some new poems..:-)
waiting for some more poems sachin..:-)
sahab kya lekhan karya prastut kiya hai.. adbhut... maan gaye...
long time, no see
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