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Friday, February 02, 2007

"तन्हा जिंदगी"

खाली सपने है,खाली है जिंदगी,
तन्हाई इतनी ना महसूस हुई कभी,
उस राह को तकती है आखें अब तक,
जिससे गुजर तू मुझे छोड़ गई थी कभी ॥


वह सूखा हुआ गुलाब, वो निशानी रुमाल की,
अब भी महफूज है वो चिट्ठियाँ,
दिल्लगी में जो तूने लिखी थी कभी ॥


प्यार की इमारत में जुड़ने को,
तरस रहा वह पत्थर आज तक,
दिल के अंदर तीर बनाकर,
जिस पर तेरा नाम लिखा था कभी ॥


सूख गया वह दरख्त,
अपने मिलने की खास जगह,
न आवाज आती है उस झरने के बहने की,
तेरी हँसी से जो गुंजती थी हरदम,
घूमा करते है उन गलियों में हम आज भी ॥

1 Comments:

Blogger OP said...

wah janab gum-e-isqe ka byan kabile tarif hai

6:53 AM  

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