"संयम"
ग़र समंदर ख़ामोश ना रहे,
बस ताक़त के जोश में रहे ,
क़यामत उसके आगोश में रहे ,
भोली नदिया कैसे उससे घुले, प्यार के अल्फ़ाज़ कहे ?
ग़र दरिया में हरदम रहे उफ़ान ,
अपने किनारों की भूले वो पहचान ,
डुबाता चले हर पेड़, जंतु , मकान,
नन्ही बतख़, कैसे बनाए उसे अपना क्रीड़ा मैदान ?
ग़र विशाल वृक्ष वो वट ,
पत्तियों से न रोके धूप-बारिश विकट,
टहनियों पे उगाये काँटों के झुरमुट ,
नाज़ुक़ गिलहरी कैसे उस पर दौड़े सरपट ?
ग़र पर्वत को अपनी स्थिरता खले ,
ढलकते पत्थरों की गड़गड़ाहट सुनने वो मचले, हिले ;
जिम्मेदारी की मिट्टी न अपने पर बाँध ले ,
फूलों की वो प्यारी क्यारी, कैसे उसकी गोद में खिले ?