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Tuesday, August 02, 2011

मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ ...

मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ,
खुशियाँ कम, गम बहुत लिख रहा हूँ |

जब गम की बदली घिर आती है,
तब याद तुम्हारी आती है |
जिंदगी के मैदान में, जब तन्हाईयाँ अपना डेरा डालती है,
तो तुम्हारी मधुर आवाज़ कानो में बोलती है,
मनो एक मीठा सा रस घोलती है |
जन्मो का प्यासा बनकर इस रस का पान कर रहा हूँ,
मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ,
खुशियाँ कम, गम बहुत लिख रहा हूँ ,
मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ |

चमकीले ये नैन तुम्हारे, आशा के दीप जलाते है |
शोखी भरे ये भाव तुम्हारे, मन विचलित कर जाते है |
वह प्यारी सी मुस्कान तुम्हारी, जब भी याद आती है,
इस पतझड से जीवन में, इक बहार छा जाती है,
और इस मुरझाये मन की, हर कली खिल जाती है|
इस उष्ण, तप्त जीवन मरू में, इक शीतल बयार जाती है,
जब वो सुलझी, लहराती केशलताएं याद आती है |
अस्पष्ट वाक्यों में, अव्यक्त भावो का इज़हार लिख रहा हूँ,
मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ,
खुशियाँ कम, गम बहुत लिख रहा हूँ ,
मैं
आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ |

जब यादे और गहराती है,
अनायास ही इक आवाज़ आती है,
तुम प्रकृति की अनुपम "रचना" ,
सबके मन की रानी,
मेरा जीवन है संघर्षो की कहानी |
निराशाओ और असफलताओ के ज्वार वाला सागर,
जिसमे लहराता मैं, कभी इधर, कभी उधर |
जीवन नैया हरदम, मझधार में फंसी है,
मगर मन-मंदीर में, तुम्हारी ही मूरत बसी है |
कागज़ के टुकड़े पर मानस-पटल लिख रहा हूँ,
मैं आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ,
खुशिया
कम, गम बहुत लिख रहा हूँ ,
मैं
आज तुम्हे ख़त लिख रहा हूँ |